ब्रम्हानंदं परमसुखदं केवलं ज्ञानमूर्तिम।
द्वंद्वातीतं गगन सदृषं तत्वमत्स्यादि लक्षम्।।
एकं नित्यं विमलमचलं सर्वदि साक्षीभूतम्।
भावातीतं त्रिगुणरहितं सद्गुरू तन् नमामि।।१।।
गुरूब्रम्हा गुरूर्विष्णुः गुरूर्देवो महेश्वर।
गुरूर्साक्षात परब्रम्ह, तस्मै श्री गुरवे नमः।।२।।
द्वंद्वातीतं गगन सदृषं तत्वमत्स्यादि लक्षम्।।
एकं नित्यं विमलमचलं सर्वदि साक्षीभूतम्।
भावातीतं त्रिगुणरहितं सद्गुरू तन् नमामि।।१।।
गुरूब्रम्हा गुरूर्विष्णुः गुरूर्देवो महेश्वर।
गुरूर्साक्षात परब्रम्ह, तस्मै श्री गुरवे नमः।।२।।
जय सदगुरू
ReplyDeleteजय सदगुरू
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